राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने हिंडन नदी के साथ साथ काली नदी को भी स्वच्छ बनाने की कवायद शुरू की है. मेरठ में कमीश्नर के रूप में कार्य करते हुए डॉ प्रभात कुमार ने हिंडन नदी को निर्मल करने के लिए मुहिम शुरू की थी, जिसमें उनके साथ साथ मेरठ, सहारनपुर, बागपत सहित अन्य स्थानों से भी लोग जुड़े और नदी के लिए स्वच्छता अभियान चलाये थे. ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के अंतर्गत हिंडन नदी को साफ करने के लिए यह ‘हिंडन सेवा कार्यक्रम’ कमिश्नर डॉ प्रभात कुमार के नेतृत्व में चलाया गया था. उन्होंने काफी सक्रियता व सजगता से इस कार्यक्रम का संचालन किया और इसके अंतर्गत हिंडन व उसकी सभी सहायक नदियों को सम्मिलित किया गया था.
विगत वर्ष
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से मार्च, 2019 तक प्रदेश की सभी नदियों की जलीय गुणवत्ता से संबंधित रिपोर्ट जारी की गयी है, जिसमें मेरठ की काली नदी एवं हिंडन नदी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा शून्य बताई गयी है. मुख्यतः सहारनपुर जिले में शिवालिक पहाड़ियों के ढलान कालूवाला खोल से प्रवाहित होने वाली हिंडन नदी यमुना की प्रमुख सहायकों में से एक है और मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली, बागपत, गाज़ियाबाद आदि जनपदों में बहते हुए बहुत से विषाक्त नाले हिंडन में गिराए जा रहे हैं.
यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में गंगा, वरुणा, काली, रामगंगा, सई, हिंडन, गोमती, सरयू, घाघरा, बेतवा, यमुना सहित अन्य कुछ नदिकाओं से भी आंकडें जुटाए गए हैं. इस रिपोर्ट के अंतर्गत जिन पैमानों पर नदी जल गुणवत्ता की जाँच की गयी, वें इस प्रकार हैं..
1. ऑक्सीजन डिमांड (डीओ)
2. बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीडीओ)
3. टोटल कोलीफोर्म
4. फीकल कोलीफोर्म
गंगा-यमुना के दोआब में सहारनपुर जनपद से प्रारम्भ होकर मुजफरनगर, शामली, मेरठ, बागपत व गाजियाबाद से होते हुए अंत में जब हिण्डन नदी गौतमबुद्धनगर जनपद के तिलवाड़ा गांव से पश्चिम व मोमनाथल गांव से पूर्व में यमुना में मलीन होती है तो इसमें बहते हुए काले रंग के बदबूदार पानी को देखकर कोई कह नहीं सकता है कि यह एक जीवित नदी है. सेटेलाइट मैपिंग व ब्रिटिश गजेटियर के आधार पर देखें तो हिण्डन का उद्गम मुजफराबाद जनपद में शिवालिक हिल्स बताया जाता है, हिण्डन नदी सहारनपुर जनपद से प्रारम्भ होकर गौतमबुद्धनगर जनपद में जाकर यमुना में समाहित हो जाती है. काली पश्चिम, कृष्णी, धमोला, पांवधोई, नागदेव, चाचाराव, सपोलिया, अंधाकुन्डी व स्रोती जैसी अन्य छोटी धाराएं मिलकर हिण्डन को नदी बनाती हैं. उद्गम से यमुना में समाहित होने तक हिण्डन की कुल लम्बाई करीब 355 किलोमीटर है.
हिण्डन व उसकी सहायक नदियों जैसे काली, कृष्णी आदि में बहते अत्यधिक प्रदूषित पानी के कारण नदी किनारे बसे गांव-कस्बों का भूजल भी जहरीला हो चुका है. सैंकड़ों गांवों में जल जनित गंभीर बीमारियां पनप रही हैं. सैंकड़ों लोग जनजनित जानलेवा बीमारियों के कारण असमय काल के मुंह में समा चुके हैं. कुछ किसान हिण्डन व उसकी सहायक नदियों में बहने वाले जहरीले पानी से जाने-अनजाने अपनी फसलों की सिंचाई भी करते हैं, जिस कारण से जहां उनके खेतों की कृषि मिट्टी में परसिसटेंट आर्गेनिक पाल्यूटेंटस जैसे तत्व पाए गए हैं वहीं उस मिट्टी में पैदा हुई सब्जियां व अन्य फसलों में भी कीटनाशकों के तत्व मिले हैं.
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेश के पश्चात् हिण्डन व उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे गांवों से सैंकड़ों की संख्या में हैण्डपम्प उखाड़े जा चुके हैं. जिन नदियों के किनारे सभ्यताएं बसती थीं वहां भयंकर जल प्रदूषण की त्रासदी के कारण बस्तियां उजड़ने की कगार पर हैं. नदी में प्रदूषण का प्रतिशत इतना है कि नदी के पानी को छूना तो दूर उसके पास खड़ा होना भी दूभर हो चला है. बुजुर्गों के अनुसार जिस नदी के पानी की तली में पड़ा हुआ सिक्का दिखता था उस पानी को हाथ में लेने पर अब हाथ की रेखाएं भी नहीं दिखती हैं.
नदियों की निर्मलता और अविरलता बनाये रखने के लिए सरकार के साथ साथ समाज को भी जागरूक होना होगा. समाज आगे आये और मिलकर नदियों के उद्धार के लिए कार्य करे तो निश्चित ही बात बनेगी, यह मानना है नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन कांत का, जिन्होंने काली नदी को उसके उद्गम स्थल पर ग्रामीणों के साथ मिलकर पुनर्जीवित किया है. साथ ही उन्होंने हिंडन की स्वच्छता को लेकर भी बहुत से प्रयास किये हैं.
इनके साथ साथ वरिष्ठ पर्यावरणविद अनिल जोशी और जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने भी कहा कि नदियों को जीवनदान देने के लिए जनसहभागिता की आवश्यकता है, आम जनता की मुहिम को जन आन्दोलन में तब्दील करना होगा, तभी नदियों के प्रति जन जन में अवचेतना आयेगी.