"जीव की जड़ जमा रहा है, नित वैभव कमा रहा है, यह आत्मा अक्षय है, जीवन की ही जय है..!!"
अपने स्वर्णिम कृतित्व से संपूर्ण भारतवर्ष में राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रस्फुटित कर देने वाले महान राष्ट्रवादी कवि मैथिलीशरण गुप्त जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन। हिन्दी साहित्य की राष्ट्रीय काव्याधरा के प्रबल समर्थक, प्रखर चिंतक, राष्ट्रप्रेम के उदात्त विचारों के महानायक राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपनी लेखनी से हिन्दी काव्य क्षेत्र को एक अलग ही मुकाम पर पहुंचा दिया, उनका अतुलनीय योगदान आज भी उनके पद्य साहित्य में दिखाई देता है।
उत्तर प्रदेश के चिरगांव, झांसी में 3 अगस्त, 1886 को जन्में मैथिलीशरण गुप्त वैष्णव परिवार से आते थे। उनकी आरंभिक शिक्षा अपने घर पर ही हुई और उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, मराठी, बंगला जैसी भाषाओं का अध्ययन बाल्यकाल में ही कर लिया था। मात्र 12 वर्ष की आयु में उन्होंने काव्य रचनाएं शुरू का दी थी और बृजभाषा में लिखी उनकी मनहोर कविताएं जल्द ही लोगों को पसंद आने लगी। एक लेखक के तौर पर मैथिलीशरण गुप्त ने तत्कालीन समाज की समस्याओं को उजागर किया और अपनी कविताओं के जरिए जन जागरण करने का कार्य किया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, विनोबा भावे आदि महापुरुषों से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी लेखनी को राष्ट्रवाद की ओर मोड़ दिया, जिसके बाद उन्होंने अबाध रूप से स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग दिया। हालांकि युवावस्था के दौर में वह क्रांतिकारी विचारधारा से ओत-प्रोत साहित्य लिखा करते थे, किन्तु तत्कालीन महापुरुषों के सिद्धांतों से प्रभावित होकर उन्होंने अपने साहित्य को एक व्यवहारिक पक्ष प्रदान किया। "साकेत", "भारत-भारती", "यशोधरा", "काबा-कर्बला" सरीखी उनकी रचनाएं आज भी हिन्दी साहित्य जगत की अनुपम रचनाओं में से हैं।
आज तीन अगस्त को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती को देश "कवि दिवस" के रूप में मनाता है। उनका कृतित्व आज भी देश के नौजवानों को राष्ट्रभक्ति की ओर ले जाने का दम रखता है और रक्षत्रजीवन की चेतन को मंत्र-स्वर देने वाले महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की काव्य-प्रतिभा को देश का जन जन अपने हृदय में स्थान देकर नमन करता है।
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