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India Data Security and Sovereignty - debate in the days of Implanted technologies.

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  • Ram Chandra Prasad Singh Ram Chandra Prasad Singh
  • September-20-2018

आज डेटा युग में, जहां डेटा को हथियार की भांति उपयोग में लाया जा सकता है, किसी भी देश के लिए उसे सुरक्षित करना बहुत महत्वपूर्ण है. भारत में बड़ी संख्या में नागरिकों, नेताओं, राजनेताओं और किसी का भी डेटा विदेशी कंपनियों या ऐसी संस्थाओं के हाथों में जाना, जो लापरवाही से उसका इस्तेमाल करें, बेहद खतरनाक है. कहा जा सकता है कि निजी डेटा का गलत इस्तेमाल भारत की राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ हो सकता है. फेसबुक से जुड़े अन्य तथ्यों को जानने के लिए पढ़ें - Fake News on Facebook and Criminal culpability of the owners.

The interview with Ravish Kumar Prime Time (March - 22- 2018)

कैंब्रिज एनालिटिका मुद्दे को लेकर विश्व भर के फेसबुक यूजर सकते में हैं. फेसबुक डाटा लीक प्रकरण को लेकर भारत में लगातार बहस जारी है, परन्तु बिना वास्तविक जागरूकता के इस मुद्दे पर बहस करना सर्वथा निरर्थक ही है. भारत में फेसबुक, गूगल, ट्विटर आदि को लेकर डिजिटल ज्ञान का वेहद अभाव है और केवल यही नहीं, सरकारी तौर पर ऐसे प्रावधानों की भी कमी है, जो इन विशालकाय तकनीकी कंपनियों की मनमानी पर रोक लगा सके. फेसबुक एनालिटिका प्रकरण से विश्व भर की सरकारें सकते में आ गयी हैं. यूरोप, जर्मनी, चीन आदि देशों में तो पहले से ही फेसबुक को लेकर बने कानून सख्त हैं, जिस पर डाटा चोरी का मामला समाना आने के बाद उपरोक्त सभी देश ठोस प्रावधान लाने की तैयारी में हैं. बात यदि भारत के संदर्भ में करें तो भारत सरकार सही रूप से अभी तक भी यह बताने में असमर्थ रही है कि भारत के लाखों यूजर्स का डाटा लीक करने के मामले में फेसबुक पर कों सा बड़ा मुकदमा दर्ज किया गया या कितना बड़ा जुर्माना लगाया गया.

कैंब्रिज एनालिटिका मुद्दा बेहद गंभीर है, विशेषकर भारत के संदर्भ में, क्योंकि यदि भारत में फेसबुक को लेकर किसी प्रकार के कानून बनाए भी गये हैं, तो उनकी समझ आम जनता को नहीं है. एनडीटीवी मीडिया पर्सन एवं न्यूज़ एंकर रवीश कुमार ने इस विषय पर स्पष्ट तौर पर कहा कि चुनावों में जनमत का निर्णय बदलने में फेसबुक बड़ी भूमिका निभा सकती है, क्योंकि जब जनता का निजी डेटा ही सुरक्षित नहीं होगा तो चुनावों की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर किस प्रकार यकीन किया जा सकता है. आज देश भर के साइबर सेल की लचर हालत, छिटपुट तनाव की स्थिति में तत्क्षण इंटरनेटबंदी, इंटरनेट पर अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कानूनों का अभाव आदि स्थितियां दर्शाती हैं कि देश वास्तव में फेसबुक डेटा लीक जैसे मुद्दों के प्रति गंभीर नहीं है.

रवीश जी ने इस संबंध में टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट एवं रिसर्च आर्गेनाईजेशन बैलेट बॉक्स इंडिया के संस्थापक राकेश प्रसाद जी से बातचीत की और आम जनता को यह समझाने का प्रयास किया कि फेसबुक मुद्दे की गंभीरता के मायने क्या है?

रवीश कुमार : क्या भारत में ऐसी जांच एजेंसियां हैं, जो डेटा प्राइवेसी के संबंध में निष्पक्ष जांच कर सकती हैं?

राकेश प्रसाद : हमारी रिसर्च के अनुसार भारत में इस प्रकार की जांच एजेंसियों का अभाव हैं और जो मौजूदा जाँच एजेंसियां हैं, उनकी डेटा प्राइवेसी सम्बन्धी कार्यप्रणाली पर शोध निरंतर जारी है. इस मुद्दे पर लम्बे समय से बहस होती रही हैं, वर्ष 2012 में भी यह मुद्दा उठा था कि देश का डेटा बाहर जाना चाहिए अथवा नहीं और यदि जाना चाहिए तो किस फॉर्मेट में? इस मुद्दे पर काफी बहस के बाद भी वर्तमान में कोई औपचारिक जांच एजेंसी हमारे संज्ञान में नहीं है, जिसकी पकड़ डेटा प्राइवेसी मामलात पर हो.  

रवीश कुमार : फेसबुक डेटा से किस प्रकार चुनावों को प्रभावित किया जा सकता है?

राकेश प्रसाद : वर्तमान युग का सबसे बड़ा हथियार डेटा है, विशेषकर व्यवहारात्मक डेटा. आज जब यूजर फेसबुक पर जाते हैं, तो वे अपने रुझान, अपनी पारिवारिक जानकारियां, अपने आइडल, अपनी पसंद-नापसंद, अपना राजनैतिक दृष्टिकोण, अपनी स्थानीय जानकारी एवं अपनी मानसिकता तक शेयर करते हैं, जो फेसबुक द्वारा रिकॉर्ड की जाती हैं. इस सम्पूर्ण जानकारी का इस्तेमाल आसानी से एक प्रोफाइल निर्मित करने में किया जा सकता है. इस प्रकार यदि एक राष्ट्र के संदर्भ में बात की जाए तो फेसबुक के पास आज इतना डेटा मौजूद है कि एक सम्पूर्ण राष्ट्र के मानस से जुड़ी गहन जानकारी (किसी विशिष्ट राज्य, विशिष्ट क्षेत्र, परिक्षेत्र या घरों में चल रही मानसिकता) भी स्टोर की जा रही है तथा इन विदेशी कंपनियों के पास पूरे राष्ट्र के मानस से जुड़ा आंकलन मौजूद है.

इस डेटा का इस्तेमाल आसानी से किसी भी राष्ट्र के मानस को बदलने में किया जा सकता है, जैसे पहले किसी की मानसिकता को बदलने के लिए हथियारों या प्रेशर का उपयोग किया जाता था, वैसे ही आज प्रभावशाली मार्केटिंग के जरिये, उनके द्वारा तैयार मेट्रिक्स के माध्यम से किसी भी राष्ट्र के मानस को प्रभावित किया जा सकता है. इसके लिए केपीआई को सत्यापित किया जाता है, धीरे धीरे व्यक्ति के जहन में किसी भी विचारधारा को गहन रूप से स्थापित कर देने के लिए ट्रोल फैक्ट्रीज लगाई जाती हैं. यूजर्स का डेटा जब इस तरह से इन विदेशी एजेंसियों के पास पहुंचता है तो ऐसे बहुत से विकल्प उपलब्ध हो जाते हैं, जिसके जरिये यूजर आसानी से टारगेट हो जाते हैं. यूजर्स की छोटी से छोटी जानकारी भी इन कंपनियों के पास होती है, जिसके जरिये वें जहां चाहे वहां आपके दिमाग को ले जा सकते हैं, जो बेहद खतरनाक है.

रवीश कुमार : भारत में राजनीतिक दलों की फेसबुक डेटा प्रकरण में भूमिका के बारे में आपके क्या विचार हैं? क्या भारतीय चुनाव आयोग इस संबंध में कुछ कर सकता है?  

राकेश प्रसाद : भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ इन विदेशी एजेंसियों की भूमिका का पता बहुत से अनौपचारिक तरीकों से लग रहा है. बहुत सी समाचार एजेंसियों ने विभिन्न स्त्रोतों से पता लगाया है कि डेटा सम्बन्धी एजेंसियों का इस्तेमाल करने की बातचीत की गयी है. देश में इस तरह के कॉन्ट्रैक्टर्स की जांच की जानी चाहिए. साथ ही यह भी जांच के विषय होने चाहिए कि किस तरह से डेटा बाहर भेजा गया या किस प्रकार निजी डेटा का इस्तेमाल किया गया. पीआर एजेंसियों द्वारा चलाए गये अभियानों को भी जांच के दायरे में लाना होगा.  

जहां तक इस मामले में चुनाव आयोग की भूमिका है, तो यह कहना बेहद कठिन है कि इस तरह के मुद्दों के लिए चुनाव आयोग फिलवक्त तैयार है. डेटा से जुड़ी टेक्नोलॉजी बेहद क्लिष्ट है और भारत इस प्रकार की टेक्नोलॉजी के मामले में अभी पीछे है. इस क्लिष्ट मार्केटिंग की समझ को व्यापक रूप से समझने के लिए जिस प्रकार की योग्यता होनी चाहिए, वह हमारी जांच एजेंसियों के पास इस समय मौजूद नहीं है.

रवीश कुमार : भारतीय चुनाव आयोग के पास इस प्रकार की संभावनाओं को रोकने के लिए क्या सिस्टम है?

राकेश प्रसाद : अक्टूबर, 2017 में फेसबुक का इस्तेमाल नहीं करने के लिए हमारे द्वारा पीएमओ को पत्र लिखा गया था. इससे पहले भी हम बहुत सी आरटीआई और पत्र डालते रहे हैं कि फेसबुक लाइव का इस्तेमाल कौन से ब्रोडकास्टिंग के नियामकों के अंतर्गत आता है, जिसका कोई भी जवाब नहीं आया. एक डाटा आर्गेनाईजेशन होने के कारण हम यह जानने का प्रयास अवश्य करते हैं की यह सब क्यों हो रहा है, इसके मूल में क्या कारण हैं?

इसी कड़ी में हमने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा कि भारत का व्यवहारात्मक डेटा बाहर जाने के संबंध में क्या जांच चल रही है एवं कौन सी ऐसी जांच एजेंसियां हैं, जो इस दिशा में कारगर रूप से काम कर रही हैं. इसके साथ ही प्रधानमंत्री जी को यह भी प्रस्तावित किया कि आपके पास ब्लॉग, मन की बात आदि बहुत से ऐसे माध्यम हैं, जिनके जरिये वें सरलता से जनता के साथ संवाद कायम कर सकते हैं, तो ऐसे में फेसबुक, गूगल, ट्विटर आदि तकनीकी माध्यमों (जिनकी पहले से जांच चल रही है) का उपयोग कर उन्हें वैद्यता प्रदान करने का क्या औचित्य है? इस पर उन्होंने संज्ञान भी लिया और यह मामला गृह मंत्रालय में विचाराधीन है.

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