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डेवलपमेंट कम्युनिकेशन (विकास संचार) : निरंतरता, समानता और विकास

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  • Ram Chandra Prasad Singh Ram Chandra Prasad Singh
  • September-27-2018

डेवलपमेंट कम्युनिकेशन अर्थात् विकास संचार, संचार के उस विकसित दृष्टिकोण को परिभाषित करता है, जिसके माध्यम से विभिन्न समुदायों या व्यक्ति विशेष को अपने जीवन को बेहतर बनाने के संबंध में सही एवं सटीक जानकारी प्राप्त होती है. इसका प्रमुख उद्देश्य सार्वजनिक विकास कार्यक्रमों और नीतियों को ज़मीनी स्तर पर वास्तविक, सार्थक और टिकाऊ बनाना है. संक्षेप में, इस दृष्टिकोण का मूल ध्येय समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में नवपरिवर्तन लाना है.

डेवलपमेंट कम्युनिकेशन के मुख्य बिंदु   

डेवलपमेंट कम्युनिकेशन परस्पर मानवीय व्यवहारों यानि ह्यूमेन इंटरेकशन की एक पूरक प्रकिया है, जिसका प्रमुख आधार निरंतरता, समानता और विकास हैं. यह तीन बिन्दु हैं, जिन पर विकास संचार निर्भर करता है अर्थात् डेवलपमेंट कम्युनिकेशन इन्हीं तीन बिन्दुओं के इर्द- गिर्द घूमता है.

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1. निरंतरता : व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर हम जिस भी विषय पर बात करे या जिस भी मुद्दे को लोगों के सामने रखे, उस पर अनवरत रूप से कार्य होते रहना ही निरंतरता है. मसलन, यदि हम पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर कार्य कर रहे हैं, तो हम निरंतर नदियों, वृक्षों, स्वच्छता आदि से जुड़े पहलुओं पर न केवल नजर बनाए रखे अपितु समाज तक लगातार अपनी बात पहुंचाते भी रहे.

2. समानता : विकास संचार के अंतर्गत समानता से तात्पर्य सभी को समान रूप से अपनी बात कहने, समान विकास के अवसर प्राप्त होने एवं सामाजिक समानता से है. डेवलपमेंट कम्युनिकेशन के अंतर्गत किसी भी मुद्दे से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से अपना पक्ष रखने या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी आवश्यक है.

3. विकास : समाज में समान रूप से सभी को विकास के अवसर प्राप्त होना विकास संचार की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है. इससे सीधा तात्पर्य विषयों को निरंतर और समान रूप से अभिव्यक्त करने एवं उनका क्रियान्वन होने से है, जिससे समाज प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सके.  

डेवलपमेंट कम्युनिकेशन के आधार

किसी भी समाज में एक बेहतरीन विकास संचार स्थापित करने के लिए बहुत सी आवश्यकताएं होती हैं, जिनके माध्यम से सामान्य संचार को भी प्रभावशाली बनाया जा सकता है. जैसे कि..

1. बेहतर टीम मैनेजमेंट :

किसी भी समाज में एक अच्छा डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन स्थापित करने के लिए एक अच्छी टीम की आवश्यकता होती है और एक अच्छी टीम तभी बन सकती है, जब लोग आपसे जुडें, प्रभावशाली रूप से आपके वक्तव्य को सुनें तथा आपके मंतव्यों को केवल सुना ही नहीं जाए, अपितु उचित प्रकार से समझकर उसका क्रियान्वयन भी किया जा सकें.

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2. जनसमर्थन की अनिवार्यता :

नदी, पर्यावरण, शिक्षा या समाज से संबंधित अन्य कोई भी मुद्दा हो, सभी पर कार्य करने के लिए जनआधार की आवश्यकता होती है. आपके द्वारा चलाए जा रहे अभियानों को आम जनता सही से समझे, उनके साथ जुड़कर अपनी प्रतिक्रिया दे अथवा उनमें सहभागीदारी दिखाएं, यह किसी भी समाज में विकास संचार के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. अतः डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन के लिए लोगों का इन मुद्दों के साथ जुड़ना और उन पर साथ मिलकर काम करना बेहद जरूरी है.

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डेवलपमेंट कम्युनिकेशन में आने वाली बाधाएं

समाज में यदि कोई भी मुद्दा उठाया जाता है, या नवपरिवर्तन की मुहिम चलाई जाती है, तो उसमें समस्याओं का आना तो लाज़िमी है. परन्तु उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि उन बाधाओं की सही जानकारी पहले से ही हो, जिससे उनके समाधान हेतु सटीक उपाय निकले जा सकें. विकास संचार के मार्ग में आने वाली कुछ बाधाएं इस प्रकार हैं..

1. व्यक्तिगत पहचान अथवा ब्रांड स्थापित करना :

वर्तमान समय इनफार्मेशन एक्स्प्लोजन का है, यानि आज हर जगह शोर अत्याधिक है, जिसमें असल मुद्दें कहीं खो जाते है. शो-ऑफ के इस समय में अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाना या अपनी बातों को प्रभावशाली रूप से समाज के सम्मुख रख पाना वास्तव में एक बहुत जटिल प्रक्रिया है.

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आजकल के कोलाहलपूर्ण वातावरण में कोई विद्वान, विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार आदि किस प्रकार समाज में निरंतरता, समानता एवं विकास पर अपने विचारों को प्रभावशाली ढंग से समाज में प्रसारित करें तथा एक सुलभ मंच स्वयं को किस प्रकार उपलब्ध कराएं, जिसके जरिये शक्तिशाली जनआधार मिल सकें, आज यह सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरकर आ रहा है.

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2. सकारात्मक सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करना :

विकास संचार के अंतर्गत दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि आपकी बातों का सकारात्मक सामाजिक प्रभाव जनता पर किस प्रकार पड़े? लोग विकास से जुड़े आपके विचारों को सुने, समझे, आत्मसात करें और उन पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दें, यह किसी भी स्वस्थ समाज की नींव के समान है. उदाहरण के तौर पर यदि आप नदी के संरक्षण के बारे में बात करते हैं, तो क्या वास्तव में आपकी बात का प्रभाव लोगों पर हो पा रहा है? लोग आपके साथ जुड़कर कार्य करने को तैयार हो जाएं या आप उचित जनाधार अपने लिए बना सकें, वर्तमान में यह प्रक्रिया बेहद क्लिष्ट है.

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अब तक हमारी संचार एवं व्यवसायिक कार्यप्रणाली किस प्रकार की रही है?

डेवलपमेंट कम्युनिकेशन में सबसे जरूरी तथ्य यह है कि हम संबंधित संचार से क्या प्राप्त करना चाहते है और जब वह प्रभाव धरातलीय स्तर पर सक्रिय हो तो उसके मूल में स्थापित जुडाव को जानना बेहद आवश्यक है. इस कारण एक योग्य संप्रेषक (कम्यूनिकेटर) को सदैव जुडाव पर ध्यान देकर चलना चाहिए.

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यदि देखा जाए तो आज समाज का कोई भी वर्ग, समुदाय या व्यक्ति विशेष विकास संचार की बातों को रख सकते हैं या उठा सकते हैं ; इसमें वैज्ञानिक, सामाजिक नवप्रवर्तक या फिर कोई स्थानीय कार्यकर्ता भी हो सकता है और अपनी बातों को श्रोताओं तक सही मायनों में पहुँचाने के लिए वे संचार के किसी भी माध्यम का उपयोग कर सकते हैं, जिनमें मुख्य रूप से..

1. ओल्ड मीडिया : समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविज़न, टेलीफोन, रेडियो इत्यादि.

2. न्यू मीडिया : फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर, यूटयूब, लिंक्डइन आदि हैं. 

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विकास संचार के अंतर्गत संप्रेषक अपनी विचारधाराओं को जनता तक पहुंचाने के लिए अब तक संचार के इन दो माध्यमों का प्रयोग करते हैं और यहां ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर पोस्ट्स, वीडियोज, ब्लोगिंग आदि के बावजूद भी लोगों को अपनी मुहिम से जोड़ने का प्रभाव न के बराबर ही रहा है या फिर इस प्रभाव में कुछ खामियां मौजूद रही हैं.

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हमारे शोध के अनुसार समाज में नवप्रवर्तक, समाज सेवक, वैज्ञानिक या राजनेता जैसे ही नवपरिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं और विभिन्न सामाजिक मुद्दों; अनाचार, असमानता, विकास आदि के मुद्दों पर आवाज़ उठाते हैं, तो सर्वप्रथम वें ओल्ड मीडिया या न्यू मीडिया का सहारा लेते हैं. इसके पीछे उनकी मान्यता होती है कि यदि उनकी बात उचित है, तो उसे सामाजिक स्वीकृति अवश्य ही प्राप्त होगी. इस प्रक्रिया में काफी समय कार्य करने और धन लगा देने के बाद भी संप्रेषक को सफलता नहीं मिल पाती. इस पर काफी शोध भी किये जा चुके हैं तथा हमारा नदी-संरक्षण, चुनाव प्रक्रिया, डिजिटल क्षेत्र आदि विभिन्न मुद्दों पर कार्य करने के पश्चात हमारा व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है कि इन पर सोशल इंगेजमेंट काफी कम है और यह और भी कम होता जा रहा है.

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डेवलपमेंट कम्युनिकेशन का असफल होना तथा की परफॉरमेंस इंडिकेटर (KPI’S)

यहां प्रश्न यह उठता है कि न्यू मीडिया से लेकर पारंपरिक (ओल्ड) मीडिया तक डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन के इस तरह से असफल होने का कारण क्या है? वास्तव में न्यू मीडिया में किसी मुहिम के तहत एक सफल डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन के लिए की परफॉरमेंस इंडिकेटर (KPI’S) को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना सबसे ज्यादा जरूरी है. अगर आप किसी भी मुहिम या मुद्दे से जुड़ी केपीआई को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं कर पाये तो लोग आपकी मुहिम से न ही जुड़ पायेंगे और न ही इंटरैक्ट कर पायेंगे और यहीं आपका डेवलपमेंट कम्युनिकेशन असफल हो जायेगा.

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उदाहरण के रूप में हमारे कुछ शोध रहे हैं, जिनमें न्यू मीडिया के माध्यम से हमने भारतीय समाज में चुनाव प्रक्रिया में सुधार को लेकर एक जन अभियान चलाया, जिसके अंतर्गत की परफॉरमेंस इंडिकेटर जनता के सुझाव एवं संपर्क फॉर्म थे और उन पर सही तरीके से कार्य हुआ भी. परन्तु लाइक्स, शेयर आदि के बढ़ने के बावजूद भी मुख्य मुद्दा आज भी जस का तस है. उस पर सटीक प्रभाव नहीं पड़ा है.

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कहा जा सकता है कि केपीआई की सभी शर्तें पूरी करने के बाद भी और अच्छा इम्प्रैशन होने के बावजूद भी मुद्दा केवल एक मंच तक ही सीमित रहा. डेवलपमेंट कम्युनिकेशन के प्रमुख लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सका और इसे एक खास मुद्दे से जुड़े विकास संचार की असफलता ही माना जाएगा.

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वहीं अगर पारंपरिक या ओल्ड मीडिया की बात करें तो इसके असफल होने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण गुडगांव की बाढ़ है. गुडगांव में हर वर्ष मानसून के दौरान भीषण बाढ़ आती है और हर वर्ष ओल्ड मीडिया में इस बाढ़ का शोर होता है व इस पर तरह- तरह की रिपोर्टस् पेश की जाती हैं, परन्तु इसका परिणाम क्या होता है. वास्तव में इन खबरों और रिपोर्टस् पर कोई कार्यवाही नहीं होती और अगले साल फिर वैसे ही बाढ़ आती है.

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इस प्रकार लोगों पर मुद्दों का प्रभाव न पड़ने व उसकी उपेक्षा करने से यहां भी डेवलपमेंट कम्युनिकेशन असफल हो जाता है. दोनों ही प्रकार की मीडिया का विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष सामने आता है कि डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन का उद्देश्य व जिस माध्यम या चैनल द्वारा इसे किया जाता है यदि दोनों का केपीआई अलग- अलग है तो इसकी असफलता निश्चित है.

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तो क्या वास्तव में मुद्दों का समाधान हो पा रहा है?

आज के दौर में नदियों, पर्यावरण व समाज की स्थिति दिन- प्रतिदिन खराब होती जा रही है, क्योंकि सही मुद्दे लोगों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. आज लोगों तक सही बात नहीं पहुंच रही है, जो आर्गेनिक रीच मुद्दों को मिलनी चाहिए, वह वर्तमान में नहीं मिलती है, जिस कारण बड़े पैमाने पर जनसमर्थन नहीं प्राप्त होता है.

आज विज्ञापन लक्षित युग है, जिसमें विकास से अधिक ध्यान विज्ञापनों के जरिये अपने उत्पादों को बेचने की ओर है और यह व्यवस्था असल मुद्दों तक जनता की पहुंच को कहीं पीछे धकेल देती है. विज्ञापनों के माध्यम से धन कमाने से एक कोलाहल भरा वातावरण तैयार हो जाता है, जिसमें सही और सटीक बातों की महत्ता कम हो जाती है.

जिसका प्रमुख कारण आजकल मीडिया का पैसे कमाने के एक जरिये के रूप में प्रयोग होना व साइबर सेल्स का लोगों पर हावी होना है. इस प्रकार जब लोगों से आपका कम्युनिकेशन ही नहीं होगा, तो वो आपकी मुहिम से न जुड़ पायेंगे न ही उस में अपना योगदान दें पायेंगे और इससे डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन का ध्येय ही समाप्त हो जायेगा.

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डेवलपमेंट कम्युनिकेशन की सफलता के केंद्रीय बिंदु

यदि संचार प्रभावशाली नहीं होगा और लोगों तक मुद्दों के बारे में बात सही से नहीं पहुंचेगी तो लोगों में न तो संप्रेषक के साथ जुड़कर कार्य करने की रूचि पैदा होगी और न ही विकास कार्य अपने लक्ष्य तक पहुंच पायेगा. जब आपकी निरंतर कही गयी बातों का प्रभाव जनता पर नहीं पड़ेगा तो इससे एक प्रकार की नकारात्मकता का निर्माण होता चला जाएगा.

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विकास संचार को सही मायनों में स्थापित करने के लिए निम्नलिखित तीन प्रमुख आयामों को ध्यान में रखना बेहद अनिवार्य है...

1. जनता से जुड़ाव एवं निष्पक्षता : लोग आपके साथ जुडें एवं आपकी सामाजिक पहचान स्थापित हो सके. आप विकास कार्य उचित प्रकार से जनता के साथ मिलकर करें ताकि दिखाए गए मार्ग पर अनवरत चलकर एक प्रभावात्मक वातावरण निर्मित हो सकें.

2. व्यवसायिक विकास : आप जो भी विकास कार्य करें, उसका आपके व्यवसाय के साथ जुड़ना एक अहम अनिवार्यता है. जिससे सभी विचार एक सही दिशा में आगे बढ़ सकें.

3. सकारात्मक प्रभाव : जब भी आप विकास संचार के लिए प्रयास करें तो उसके सकारात्मक प्रभावों का सही फीडबैक मिलता रहे, उन प्रयासों को उचित तौर पर दस्तावेजित किया जा सके और लोगों को यह समझना बेहद जरूरी है कि किस प्रकार का प्रभाव संबंधित मुद्दों पर पड़ रहा है.

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मास मीडिया क्या है?

मास मीडिया या मास कम्युनिकेशन कोई नया विषय नहीं है, अपितु यह हजारों वर्षों से चलती आ रही प्रक्रिया है. विभिन्न समयकालों में इसके लिए विभिन्न उपागम रहे हैं. गांधी जी, मार्टिन लूथर, जे. पी. लोकनायक, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे बहुत से महापुरूष अपने समय के सफल डेवलेपमेंट कम्युनिकेटर रहे हैं, जिनके एक बड़ी संख्या में अनुयायी थे और आज भी लोग इन्हें जनआदर्श मनाते हैं.   इन्होंने न सिर्फ लोगों को खुद से जोड़ा बल्कि अपने कम्युनिकेशन के बलबूते अपनी मुहिम का समाज पर प्रभाव डाला और स्थिर बदलाव लाने में सफल हुये और यही कारण है कि आज भी वो लोग किताबों व साहित्य के माध्यम से याद किये जाते हैं.

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परन्तु आज ज्यादा माध्यम होने के बाद भी लोग मुद्दों से भटक रहे हैं, डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन का ध्येय असफल हो रहा है. मास मीडिया पहले भी था, पहले भी लोग निरंतरता, समानता और विकास के बारे में बात करते थे, लेकिन पहले उनकी बातें सुनी जाती थीं, किन्तु आज इन मुद्दों की जगह सिर्फ शोर सुनाई देता है. इसका मुख्य कारण आज के दौर में मास मीडिया के टूल्स में आया परिवर्तन तथा डेवलेपमेंट कम्युनिकेटर का Key Performance Indicator (KPI) से ध्यान हटना है.

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मास मीडिया बनाम मास मीडिया उपकरण

पिछले समय से ही लगातार निरंतरता, समानता एवं विकास पर बातचीत की जाती रही है और उसके परिणाम भी आते रहे हैं. आज संप्रेषको को यह समझने की आवश्यकता है कि मास मीडिया एवं मास मीडिया के उपकरणों में आज भारी परिवर्तन आया है.

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आज बढ़ते शोर में केपीआई से लोगों का ध्यान हट चुका है, मुख्य मुद्दों के बारे में अधिक चर्चा नहीं की जाती है तथा ऐसे बहुत से नए मानक स्थापित हो चुके हैं, जिनके कारण मुख्य मुद्दा बीच में ही दब जाता है. इसके चलते एक समझदार संप्रेषक को सदैव मार्केटिंग का सबसे बड़े बेसिक केपीआई पर अवश्य ही ध्यान देना चाहिए.

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यदि हम मास मीडिया के बदलते स्वरूप के बारे में बात करें तो वह तीन प्रमुख मुद्दों से जुड़ा हुआ है, जो इस प्रकार हैं :

1. स्थानीय एवं वैश्विक इतिहास

2. स्थानीय एवं वैश्विक इकॉनमी

3. स्थानीय एवं वैश्विक दर्शनशास्त्र

पहले के डेवलेपमेंट कम्युनिकेटर इन मुद्दों पर अच्छे से रिसर्च करते थे. लेकिन आज के समय महज सतही जानकारी का शोर मचाया जाता है, जिसकी वजह से मुख्य मुद्दे उभर कर नहीं आ पाते हैं. इसी वजह से डेवलेपमेंट संप्रेषक लोगों से नहीं जुड़ पाते. इसीलिए डेवलेपमेंट कम्युनिकेटर की इन तीनों ही मुद्दों पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए.

डेवलपमेंट कम्युनिकेशन पर बैलेट बॉक्स इंडिया की कार्यप्रणाली

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डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन पर बैलटबॉक्सइंडिया का मानना है, कि समाज में किसी भी मुद्दे के समाधान की चार धुरियां होती हैं या समाज चार स्तम्भों पर खड़ा होता है. जिसमें सबसे पहले आता है..

1. मुद्दों को सुव्यवस्थित तरीके से लेख के रूप में तैयार करना,

2. उन मुद्दों पर एक वैध रिसर्च तैयार करना, जिससे लोग वास्तविकता से परिचित हो सके.

3. विशेषज्ञों को खोजना जो उन मुद्दों से जुड़े हों तथा उनके समाधान व रिसर्च में मदद कर सकें.

4. समाज एवं लोगों को संबंधित मुद्दों के बारे में बताना, उन्हें कैसे हल कर सकते हैं, कौन लोग उन्हें हल कर रहे हैं और उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसकी जानकारी जनता तक सही तरीके से पहुंचाना.

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इस प्रकार बैलटबॉक्सइंडिया न सिर्फ डेवलेपमेंट कम्युनिकेशन को स्थापित करने में मदद करता है बल्कि इसके माध्यम से हम समाज के लिए काम करने वाले व समाज को आगे ले जा सकने वाले डेवलपमेंट कम्युनिकेटर्स को भी खोज निकालने का काम करते हैं.

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