विविधताओं से भरे इस देश में लगी भाषाओँ की फुलवारी है,
जिसमें हमको सबसे प्यारी हिंदी मातृभाषा हमारी है..!!
भारत देश की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है हिंदी, "हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा", जब भी यह पंक्तियां कहीं भी दोहराई जाती हैं तो हर भारतीय का हृदय गर्व से भर जाता है. हिंदी हमारी पहचान है, हमारा अभिमान है किंतु फिर भी इस भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर जो सम्मान मिलना चाहिए वह आज तक भी नहीं मिल पाया है. आज यानि 14 सितम्बर को हम हिंदी दिवस मना रहे हैं, क्योंकि 14 सितम्बर, 1949 के दिन ही तत्कालीन भारत सरकार द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था.
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने वर्ष 1918 में हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने के लिए फल की थी और उन्होंने हिंदी को आम जन की भाषा बताया था. इसी के चलते हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला लेकिन गैर हिंदी भाषी लोगों को यह निर्णय उचित नहीं लगा और उन्होंने इसका विरोध किया, जिसके चलते अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दिया गया.
आज यदि हम अपने आस पास नजर दौड़ाते हैं तो देखते हैं कि हिंदी हमारे बीच से कहीं गायब सी होती जा रही है और अंग्रेजी का प्रभुत्व काफी अधिक बढ़ गया है, जबकि होना इसका विपरीत चाहिए था. देखा जाए तो 200 वर्षों की गुलामी ने कहीं न कहीं हमारी मातृभाषा को आज तक गुलाम बनाये रखा है तभी तो आज का युवा हिंदी में संवाद करने में हिचकिचिता है और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलकर खुद को समझदार महसूस करता है.
यदि हमें हिंदी भाषा को बचाना है तो प्रयास करना होगा कि हमारी बोलचाल से अलग सरकारी काम काज हिंदी भाषा में हों, हमें प्रयास करना होगा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ़े. कोई भी देश अपनी मातृभाषा, संस्कृति और परंपराओं को खोकर आगे नहीं बढ़ सकता, हमें आवश्यकता है चीन, रूस, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से सीख लेने की, जहां आज भी अपनी भाषा को अत्याधिक महत्त्व दिया जाता है. इन देशों के प्रभावशाली लोग और प्रबुद्ध जन अपने व्याख्यानों में भी अपनी भाषा को ही उपयोग में लाते हैं, हमें भी इन देशों से उदाहरण लेना होगा और गुलामी भरी मानसिकता से बाहर निकलकर अपनी भाषा को अपनाना होगा.