देश के औद्योगिक, सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए खनिज संसाधन सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं और स्टील भी उन्हीं में से एक है, जिसकी मांग बीते कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है। आज बढ़ती हुई वैश्विक आबादी और तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के कारण धातुओं और खनिजों की मांग लगातार बढ रही है और इसी बढ़ती मांग से प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ भी बढ़ने लगता है। इसी मुद्दे को लेकर केन्द्रीय इस्पात मंत्री श्री सिंह ने आज उद्योग भवन में डालमिया सीमेंट्स के एमडी श्री महेंद्र सिंघी से मुलाकात की। इस मुलाकात क्रम में इस्पात उद्योग के अंतर्गत कार्बन फुट प्रिन्ट को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता का दोहराव डालमिया ग्रुप द्वारा किया गया।
बताते चलें कि भारतीय इस्पात उद्योग की उत्पादन प्रक्रिया में प्रमुख रूप से ब्लास्ट फर्नेस का उपयोग किया जाता है, जिसमे धातुकर्मीय कोयले का उपयोग किया जाता है, जो कि ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का एक प्रमुख घटक है। गत वर्ष इसी विषय को लेकर हुई चर्चा में मंत्री महोदय ने सुझाया था कि कार्बन डाईऑक्साईड गैस के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कार्बन कैप्चर और स्टोरेज तथा कार्बन कैप्चर और उपयोगिता तकनीकी का प्रयोग किया जा सकता है, जिससे कि यह वायुमंडल में प्रवेश न कर सके और इसे व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य उत्पादों में परिवर्तित किया जा सके।
डालमिया ग्रुप से हुई मुलाकात के बाद भी श्री सिंह ने सभी प्राथमिक व द्वितीयक इस्पात उत्पादकों से अपील करते हुए कहा कि उद्योग अपने कार्बन फुटप्रिंट में सुधार लाने के लिए उपलब्ध समाधानों का उपयोग करे और डीकार्बोनाइजेशन की दिशा में बड़े कदम उठाएं तथा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर भी विचार करें तो हम पर्यावरण के साथ अनुकूल होकर सामंजस्य स्थापित करते हुए कार्य कर सकेंग।