लाल, बाल, पाल त्रयी के मजबूत आधारभूत स्तंभ लाला लाजपत राय भारत के उन चुनिंदा स्वतंत्रता सेनानियों में आते हैं, जिन्होंने संघर्ष को भारत माता की स्वतंत्रता का आधार माना। देश में गरम दल के प्रमुख नेता माने जाने वाले लाला लाजपत राय को "पंजाब केसरी" की उपाधि भी दी गई थी, क्योंकि जब वह अपनी बात रखते थे तो उनकी गर्जना से अंग्रेजी हुकूमत भी थरथरा उठती थी।
बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी लाला लाजपत राय ने एक विचारक, बैंकर, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी की भूमिकाओं में जिस प्रकार स्वयं को ढाला, वह काबिले तारीफ था। पिता के तबादले के साथ हिसार पहुंचे लाला लाजपत राय ने शुरूआत के दिनों में वकालत की, स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ जुड़कर उन्होंने पंजाब में आर्य समाज को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। लाला जी एक बुद्धिमान बैंकर भी थे। आज देश भर में जिस पंजाब नेशनल बैंक की तमाम शाखाएं हमें दिखती हैं उसकी स्थापना लाला लाजपत राय के सहयोग के बिना संभव नहीं थी।
लाला जी वस्तुत: वकालत से जुड़े थे, उन्होंने वर्ष 1880 में लाहौर स्थित सरकारी कॉलेज में लॉ की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। वर्ष 1885 में लाला जी ने वकालत की डिग्री प्राप्त करने के उपरांत हिसार में वकालत शुरू कर दी थी और साथ ही उन्होंने कॉंग्रेस के वार्षिक सत्रों में प्रतिनिधि के रूप में भागीदारी की थी। वर्ष 1892 में वह हाईकोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करने के लिए लाहौर चले गए।
भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर उन्होंने दुनिया के सामने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों को रखने का निर्णय लिया और इसके लिए उन्होंने आजीवन संघर्ष भी किया। इनका मानना था कि आजादी याचना से नहीं मिलती, बल्कि इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है और इसी संघर्ष को करते करते लाला जी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। वर्ष 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी चार्ज में लाला जी घायल हो गए थे, जिसके बाद 17 नवंबर को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।